दादा साहेब फाल्के के 148वें जन्मदिवस पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया
Father Of Indian Cinema कहलाने वाले दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) के 148वें जन्मदिवस के मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें याद किया है. दादा साहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के नासिक शहर में हुआ था. दादा साहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत गोधरा में बातौर फोटोग्राफर की थी लेकिन पहली पत्नी और बच्चे के अचानक निधन के बाद उन्होंने इससे किनारा कर लिया। जिसके बाद उन्होंने भारत के पुरातत्व सर्वेश्रण विभाग में ड्राफ्टमैन के तौर पर काम किया।
19 साल के फिल्मी सफर में दादा साहब फाल्के ने 121 फिल्में बनाई जिसमें 26 शॉर्ट फिल्में शामिल हैं।
दादा साहब फाल्के की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। वही साउंड फिल्म 'गंगावतरन' थी। दादा साहब फाल्के का निधन 16 फरवरी 1944 को नासिक में हुआ। उनके निधन के बाद भारत सरकार ने दादा साहब के सम्मान में साल 1969 में 'दादा साहब फाल्के अवॉर्ड' की शुरुआत की। देविका रानी चौधरी पहली ऐसी एक्ट्रेस थीं जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया था।
दादा साहब फाल्के शुरुआत से ही अपने आप को किसी भी एक सीमा में बांध कर नहीं रखना चाहते थे। इसी वजह से पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में काम के दौरान ही इन्होंने अपना प्रिंटिंग प्रेस का बिजनेस शुरू कर दिया था। इसके बाद वह नई टेक्नोलॉजी सीखने के लिए जर्मनी भी गए।
दादा साहब फाल्के हमेशा ही कुछ नया करने की चाहत रखते थे। उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट 'द लाइफ ऑफ क्रिस्ट' फिल्म साबित हुई। यह एक मूक फिल्म थी। इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहब के मन में कई तरह के विचार तैरने लगे तभी उन्होंने अपनी पत्नी से कुछ पैसे उधार लिए और पहली मूक फिल्म बनाई।
इसके बाद साल 1913 में दादा साहब फाल्के ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नींव रखी जिसकी वजह से लोग उन्हें इंडस्ट्री का जनक कहने लगे। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' रिलीज हुई। यह पहली फिल्म थी जिसे पब्लिक के लिए कोरोनेशन सिनेमा में 3 मई 1913 को मुंबई में पहला शो रखा गया था।
'राजा हरिश्चन्द्र' में तारामती का किरदार निभाने के लिए दादा साहब फाल्के कोई भी एक्ट्रेस नहीं मिल रही थी। यहां तक कि एक्ट्रेस की तलाश करते हुए दादा साहब रेड लाइट एरिया तक भी पहुंच गए थे। जब वहां की लड़कियों से उन्होंने बात की और फीस बताई तो लड़कियों ने कहा था कि वह इतना पैसा तो एक रात में ही कमा लेती हैं। हालांकि उनकी तलाश एक होटल में पूरी हुई। जब वह चाय पी रहे थे तभी उनकी नजर एक लड़की पर पड़ी और उन्होंने उसे तारामती के रोल के लिए कास्ट कर लिया। इस फिल्म का कुल बजट 15 हजार था।
Dada Saheb Phalke |
19 साल के फिल्मी सफर में दादा साहब फाल्के ने 121 फिल्में बनाई जिसमें 26 शॉर्ट फिल्में शामिल हैं।
दादा साहब फाल्के की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। वही साउंड फिल्म 'गंगावतरन' थी। दादा साहब फाल्के का निधन 16 फरवरी 1944 को नासिक में हुआ। उनके निधन के बाद भारत सरकार ने दादा साहब के सम्मान में साल 1969 में 'दादा साहब फाल्के अवॉर्ड' की शुरुआत की। देविका रानी चौधरी पहली ऐसी एक्ट्रेस थीं जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया था।
दादा साहब फाल्के शुरुआत से ही अपने आप को किसी भी एक सीमा में बांध कर नहीं रखना चाहते थे। इसी वजह से पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में काम के दौरान ही इन्होंने अपना प्रिंटिंग प्रेस का बिजनेस शुरू कर दिया था। इसके बाद वह नई टेक्नोलॉजी सीखने के लिए जर्मनी भी गए।
दादा साहब फाल्के हमेशा ही कुछ नया करने की चाहत रखते थे। उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट 'द लाइफ ऑफ क्रिस्ट' फिल्म साबित हुई। यह एक मूक फिल्म थी। इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहब के मन में कई तरह के विचार तैरने लगे तभी उन्होंने अपनी पत्नी से कुछ पैसे उधार लिए और पहली मूक फिल्म बनाई।
इसके बाद साल 1913 में दादा साहब फाल्के ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नींव रखी जिसकी वजह से लोग उन्हें इंडस्ट्री का जनक कहने लगे। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' रिलीज हुई। यह पहली फिल्म थी जिसे पब्लिक के लिए कोरोनेशन सिनेमा में 3 मई 1913 को मुंबई में पहला शो रखा गया था।
'राजा हरिश्चन्द्र' में तारामती का किरदार निभाने के लिए दादा साहब फाल्के कोई भी एक्ट्रेस नहीं मिल रही थी। यहां तक कि एक्ट्रेस की तलाश करते हुए दादा साहब रेड लाइट एरिया तक भी पहुंच गए थे। जब वहां की लड़कियों से उन्होंने बात की और फीस बताई तो लड़कियों ने कहा था कि वह इतना पैसा तो एक रात में ही कमा लेती हैं। हालांकि उनकी तलाश एक होटल में पूरी हुई। जब वह चाय पी रहे थे तभी उनकी नजर एक लड़की पर पड़ी और उन्होंने उसे तारामती के रोल के लिए कास्ट कर लिया। इस फिल्म का कुल बजट 15 हजार था।
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